*अशोक आनन*
फटी रजाई -
सिर पर जाड़ा ।
मौसम ने -
फिर किया कबाड़ा ।
सूरज ने भी -
फेरीं आंखें ।
उघड़े तन को -
कैसे ढांके ?
थर-थर , थर -थर -
रहे कांपते ।
लेकिन , पीने -
मिला न काड़ा ।
स्वेटर -कंबल -
लगता सपना ।
पेट है सिगड़ी -
जिसमें तपना ।
घुन सरीखी -
चिंता लागी ।
पत्नी ने जब -
आटा झाड़ा ।
*अशोक आनन,मक्सी - 465106 जिला-शाजापुर (म.प्र.)
मोबाइल नं : 9981240575
अब नये रूप में वेब संस्करण शाश्वत सृजन देखे
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
0 टिप्पणियाँ