*डॉ प्रतिभा सिंह*
हिंदी साहित्य की काव्य विधा का इतिहास बहुत पुराना है।शायद तबसे जब पंछियों ने कलरव करना सीखा ,हवाओं ने प्रचंड वेग छोड़कर सरसराना शुरू किया।जब पुष्प सुवासित गन्ध से भर उठे और बादलों आक्रोश छोड़ रिमझिम बरसने लगे।तब मनुष्य के ज्ञान की परिधि थोड़ी और विकसित हुई और जब अक्षर -अक्षर खुलने लगे तो उसने एक -एक अक्षरों को जोड़कर कुछ सार्थक शब्द बना दिये ।फिर तो मनुष्य ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कुछ शब्द समूहों को बड़ी ख़ूबसूरतीं से सजाकर आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करना सीख लिया।और इस तरह से,बनने लगी कविता।
कविता ने आदिकाल से 21वीं सदी तक आते -आते एक लंबी दूरी तय की है। सदियों के तमाम उतार चढाओं को देखा है। रस ,छंद ,अलंकारों से अनुशासित कविता वर्तमान तक पहुँचते -पहुँचते बिल्कुल मुक्त हो गई और नई कविता का रूप ले लिया।नई कविता का कवि अपनी बातों को रखने के लिए सुंदर शब्दों और रस, छंद, अलंकार को न लेकर बहुत ही साधारण तरीके से बिल्कुल नए अंदाज में अपनी भावनाओं को इस कदर रख देता है कि पाठक उसकी गहराई की थाह लेने के लिए और गहरे उतरता ही चला जाता है।
किन्तु ऐसा भी नहीं है कि आधुनिकता की दौड़ में नई कविता उश्रृंखल हो गई है।बल्कि इसने कविता की कई ऐसी परम्पराओं को पुनर्जीवित किया जो लगभग मरनसन्न हो चुकी थीं।इसने कई ऐसी विशेषताओं को ग्रहण किया जिनका वास्तव में हिंदी कविता में कोई स्थान ही नहीं था।इन्हीं विशेषताओं में से एक विशेषता है 'नई कविता में मिथकों का प्रयोग'।
सम्भवतःहिंदी का मिथक शब्द अंग्रेजी भाषा के मिथ से लिया गया है,जिसका प्रयोग आधुनिक युग में शुरू हुआ है।सम्भवतः हिंदी साहित्य में मिथक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी से शुरू हुआ।किन्तु हिंदी में मिथक शब्द के अंग्रेजी के मिथ शब्द से लिये जाने का अर्थ यह भी नहीं की मिथ और मिथक समान अर्थ रखते हैं।मिथ प्रायः तर्क से परे कल्पनाशीलता पर आधारित है,जबकि मिथक में अलौकिकता का समावेश होते हुए भी मात्र कल्पनाशीलता पर आधारित नहीं होता।वास्तव में लोक की अनुभूति से जुड़ा है।अंग्रेजी का मिथ शब्द यूनानी भाषा के मुथास से आया है।जिसका अर्थ है--मौखिक कथा। भारतीय परिप्रेक्ष्य में मिथक प्रारम्भिक युग के वास्तविक विश्वासों को अभिव्यक्त करता है।जो आख्यापरक और प्रतीकों से युक्त हैं। मिथकों की जो मूलभूत विशेषता होती है वह यह है कि यह न केवल मूल समस्या की ओर व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करता है बल्कि उसके समाधान तक भी पहुंचता है।
वास्तव में हिंदी में मिथकों के प्रयोग का चलन आधुनिक युग में शुरू हुआ है।अतः यह कहना अनुचित न होगा कि हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के प्रारम्भ से ही रचनाकारों ने मिथकों को महत्व दिया है।उन्होंने अपनी रचनाओं में मिथकों का प्रयोग करके इसका नई दृष्टि से सृजन प्रारम्भ किया है।आधुनिक रचनाकार मिथक आधारित अपनी रचना में मिथक की मात्र नई व्याख्या करने तक सीमित नहीं हैं और ना ही रूढ़ियों और बंजर परम्पराओं से उसे मुक्ति दिलाने तक।सत्य तो यह है कि समर्थ रचनाकार मिथक में निहित देशकालातीत राग तत्व अर्थात सत्य तक पहुँचकर अपने समय के सत्य को अभिव्यक्त करता है।इस अर्थ में वह मिथक में निहित सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक तत्व का संधान कर अपने समय के सत्य को वही विशेषताएं प्रदान करता हुआ उसे आत्मसात करता है।
नए कवियों ने मिथक का सैद्धांतिक और व्यवहारिक दोनो ही रूपों में महत्व माना है।उन्होंने मिथक उपयोग के प्रायः चार कारण माने हैं--
1- किसी उपेक्षित तिरस्कृत अथवा निंदित पात्र या फिर कथा को सहानुभूति के साथ प्रस्तुत करते हुए उसमें निहित मानवता को उजागर करना।
2--किसी छिपे हुए महत्वपूर्ण अर्थ को आधार के साथ उद्घाटित करते हुए सांस्कृतिक वैभव के साथ कलात्मक चमत्कृत की प्रगति करना।
3--प्राचीन कथा -प्रसंग के सहारे अपनी संवेदना को परिविस्तार देना और इस प्रकार वस्तुपरकता अर्जित करते हुए नए सौंदर्य का विधान करना।
4-आधुनिक युग की किसी जीवंत समस्या को व्यापक भूमि पर प्रतिष्ठित करने तथा देने के निमित्त उसे मिथकीय प्रतीकात्मकता प्रदान करना।
नई कविता हिंदी की ऐसी धारा है जिसमें पहली बार मिथक का सार्थक और मार्मिक उपयोग दिखाई देता है।अनेक स्थलों पर यांत्रिक युग की युद्ध की विभीषिका का समानांतर मिथक के प्रसंगों का चुनाव किया गया है।नई कविता की विशिष्ट उपलब्धि के रूप में धर्मवीर भारती दुष्यंत कुमार कुँवर नारायण नरेश मेहता,अज्ञेय आदि उल्लेखनीय हैं।धर्मवीर भारती ने अपने काव्य कनुप्रिया में राधा को कृष्ण की प्रेयसी के रूप में वर्णित न करके आदर्श समाज सेविका के रूप में वर्णित किया है।जैसे-
मैं पगडंडी के कठिनतम मोड़ पर
तुम्हारी प्रतीक्षा में
अडिग खड़ी हूँ कनु मेरे।
धर्मवीर भारती ने अंधायुग में मिथकों का रूप परिवर्तित कर श्रेष्ठ मिथकीय काव्य की रचना की है।इसमें युद्ध के पश्चात समाज में व्यक्तियों की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है।जबकि कुँवर नारायण चक्रव्यूह की रचना में महाभारत की उस कथा का प्रसंग लिया जिसमें अभिमन्यु अपने अंतिम समय में निहत्था युद्ध करने को विवश हो गया था।वास्तव में आज का हर व्यक्ति अपने को एक विचित्र चक्रव्यूह में घिरा पा रहा है और कुँअर नारायण ने मिथकों के माध्यम से इसे बखूबी दिखाने का प्रयास किया है।कुँवर नारायण के काव्य "आत्मजयी"की मूल कथा कठोपनिषद से ली गई है।यह काव्य वर्तमान जीवन में उठे प्रश्नों को चिरकलिक भावों से जोड़ने का प्रयास तथा उत्तर पाने की अकुलाहट व्यक्त करता है।
नरेश मेहता ने अपने मिथकीय काव्य "संशय की एक रात"में मनोवैज्ञानिक प्रश्न उठाया है कि यदि आज का मानव राम के जीवन जैसी विषम परिस्थितियों में घिर जाए तो क्या करेगा?यह काव्य मानवीय स्तर पर राम-रावण युद्ध से पूर्व की स्थिति का मनोवैज्ञानिक अंकन है--
महाप्रस्थान की काव्यथा भी नरेश मेहता ने पौराणिक कथा से ली है।यह उनका दूसरा प्रबन्ध काव्य है जिसमें उन्होंने मिथक कथा और पत्रों के माध्यम से राज्य व्यवस्था एवं युद्ध की समस्या को पुनः आधार बनाया।"प्रसाद पर्व" नरेश मेहता की ऐसी कृति है जिसमें उन्होंने आपातकालीन संदर्भ में राज्य व्यवस्था को ही प्रमुखता से रेखांकित किया है।
इस प्रकार हिंदी साहित्य की नई कविताओं में हृदय और बुद्धि का कोई भी आयाम ऐसा नहीं है जहाँ मिथक कथाओं की पहुंच न हो।
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
0 टिप्पणियाँ