*संगीता श्रीवास्तव*
न तेरा ठिकाना न मेरा ठिकाना
चला चल मुसाफ़िर बहुत दूर जाना |
ये तेरी कहानी ये मेरी कहानी
ये दो चार दिन की है बस ज़िंदगानी
सुनाता यहां कौन किसको फ़साना
चला चल मुसाफ़िर बहुत दूर जाना |
है अनजानी राहें सजी ठोकरों से
मगर हम बढ़ेंगे निडर पत्थरों से
न कर इतनी परवाह है बेघर ज़माना
चला चल मुसाफ़िर बहुत दूर जाना |
नज़र भर की बातें ही मुझसे करो तुम
नहीं लौट जाने की ज़िद अब करो तुम
किसी बात का फिर बनाकर बहाना
चला चल मुसाफ़िर बहुत दूर जाना |
मेरे आज दिन रात पल पल में रहती
वो बहती नदी राज कल कल में कहती
हवाओं की धुन पे सजाकर तराना
चला चल मुसाफ़िर बहुत दूर जाना |
*संगीता श्रीवास्तव
छिंदवाड़ा मप्र
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