*पुखराज जैन पथिक*
मै गंगा की पावन धारा ,
वैग मेरा तूफानी ,
जो भी मेरे सामने आया ,
हो गया पानी पानी।
भागीरथी के कारण मैने ,
शिव जटा को धारा है ,
तब अपने आप को मैंने ,
इस धरती पर उतारा है
सदा यहीं रहूंगी मै तो ,
यह दुनियां आनी जानी है ।
मेला कचरा डाल मुझमें ,
बनते सब अंजान है ,
मेली मुझको कर रहे ये ,
धरती के सब इंसान है ,
कितना निर्मल जल था मेरा ,
क्यों करते हो मनमानी ।
झूठी कसमे खाकर मेरी ,
डूबकी मुझमें लगाते है ,
पाप धोने सारे अपने ,
मेरे घाट पर आते है ,
पाप सदा से धोती आई ,
मेरी यहीं कहानी है ।
*पुखराज जैन पथिक नागदा उज्जैन
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