*अजय कुमार द्विवेदी*
हूँ मै तुमसे दूर तो क्या कल पास तुम्हारे आऊंगा।
अपने हृदय के भावों को मै तुमसे बतलाऊंगा।
सुन्दरता को देख तुम्हारी चाँद की उपमा धूमिल हो।
तुम चंचलता से भरी हुई सुन्दर परियों मे शामिल हो।
हृदय मे पीड़ा उठती है जब होता हूँ तुमसे दूर प्रिये।
मिलने को समय न मिलता है मै होता हूँ मजबूर प्रिये।
आया हूँ जबसे बाहर मै क्या कहूँ मै कितना व्याकुल हूँ।
असहनीय है यह विरह आग मिलने को तुमसे आतुर हूँ।
है ज्ञात मुझे की दूरी भी होती है हिस्सा जीवन का।
दो हृदय जब मिलते है कहतीं है किस्सा जीवन का।
पर समय चक्र यह काल चक्र ऐसे ही चलता रहता है।
हर वक्त तैयार परीक्षा को यह आगे बढ़ता रहता है।
पर चिंता नहीं है मुझको मै हूँ तैयार परीक्षा को।
चन्द घन्टों बाद होने वाले अपने मिलन की प्रतीक्षा को।
*अजय कुमार द्विवेदी, दिल्ली मो.8800677255
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