*सुनील कुमार माथुर*
हे नारी ! जब तुम सडकों पर चलती हो
तब कुछ सिर फिरे आप पर
फब्तियां कसते हैं , नाना प्रकार की वे
तुम पर टिप्पणी करते हैं तब मैं
मन ही मन सोचता हूं
हे नारी ! तू कौन है ?
क्या तू मां बहन बेटी नहीं लगती
तू अबला है या सबला है
यह मैं नहीं जान पाया
लम्बी तेरी चोटी देखकर भी
मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि
तू कैसी नारी है ?
क्या शास्त्रों वाली नारी नहीं है
क्या तू पहले वाली नारी भी नहीं है चूंकि
तेरी वेशभूषा देखकर इंसान तुझे
पूरा सम्मान नहीं दे रहा है वरन्
तुझे देखकर वह सीटियां बजा रहा है
वह तुझ पर फब्तियां कस रहा है चूंकि
तेरे शरीर पर पहने वस्त्र बहुत छोटे है
तेरी देह का अंग अंग
तेरे पारदर्शी वस्त्रों से झांक रहा है
अगर तू मां बहन बेटी और
सभ्य समाज की नारी होती तो
शायद तेरा यह अर्ध्द नग्न शरीर न होता
और न ही ये पारदर्शी वस्त्र
तेरे शरीर पर होते
जब कोई नारी को
हेय दृष्टि से देखता
उस पर फब्तियां कसता है
गलत बात की टिप्पणी करता है तो
मुझे बडी पीडा होती हैं चूंकि
वह नादान यह नहीं जानता है कि
महिला ( नारी ) शब्द का अर्थ क्या होता है
म से ममता की मूर्त है नारी
हि से वह हिम्मत वाली है और
ला से वह लाज वाली है
हे मेरी मां बहन बेटी
मेरीआप से हाथ जोड यही विनती है कि
भारतीय सभ्यता और संस्कृति की लाज रख
पाश्चात्य संस्कृति के हमले से हमें बचना होगा
मैं नारी से विनती ही कर सकता हूं लेकिन
सोचना समझना उनको होगा
हो सकता है कि कहीं मैं ही गलत हूं
तो आप से क्षमा मांग लूं
चूंकि मैं तो समाज का एक
तूछ प्राणी हू गलत हू तो क्षमा कर देना
आप सभ्य समाज की नारी है
सीता सावित्री वाला यह देश है
मां दुर्गा भवानी लक्ष्मी को पूजा जाता है
आप उस भारत की नारी है
जहां झांसी लक्ष्मी बाई की
पन्नाधाय की गाथा सुनाई जाती हैं
फिर भला वहां
पाश्चात्य संस्कृति के हमले क्यो ?
हे नारी तू वंदनीय है, पूज्यनीय है
देवी स्वरूपा है
तेरे ही चरणों में चारों धाम है
*सुनील कुमार माथुर ,33 वर्धमान नगर शोभावतो की ढाणी खेमे का कुआ पालरोड जोधपुर राजस्थान
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