*शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'*
नवगीतों की, गोलमेज पर,
बैठा अनुसंधान।
नए हिमालय की तलाश में,
शब्दशास्त्र के तथ्य,
भाव-बोध के चयनित अक्षर,
शब्द सुशिक्षित कथ्य,
अर्थवाद के लोकतंत्र के,
शिष्ट विषयगत ज्ञान।
भाषा के हर सिंहद्वार की
द्युति, वीणा के बोल,
नई शृंखला, नई उपज के,
स्वर-सप्तक के लोल,
अधरों की धुन, इंद्रधनुष छवि,
सुर के मगही पान।
यादों के शाश्वत समूह के,
शुचि सुछंद के मोर,
वाक्यों की घाटी जो जाती,
स्वर्गभूमि की ओर,
मंत्रमुग्ध वह लय का पर्वत,
उगे खेत में धान।
कविताओं के शब्द-बैंक के,
नकद जमा भुगतान,
यति-गति-नति के दरवाजों के,
खड़े हुए उपमान,
ललित क्षितिज की, सांध्य-किरण की,
प्रभुता के अवदान।
*शिवानन्द सिंह 'सहयोगी',मेरठ
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