*विजय कनौजिया*
आज कहो तुम अपने मन की
आज कहूँ मैं अपने मन की
दिल से दिल की बातें होंगी
चाहत हो फिर अपनेपन की..।।
उलझन भी अब सुलझा दो तुम
ये दिल कब से उलझा है
चैन इसे भी मिल जाएगा
राहत हो फिर इस उलझन की..।।
चलो उमंगों की दुनिया में
हम भी शामिल हो जाएं
मधुर मिलन ऐसा हो अपना
बारिश हो फिर से सावन की..।।
विखरे रिश्तों की लड़ियों को
फिर से साथ मिलाते हैं
मन से मन का भेद मिटेगा
पूरी हो फिर चाहत मन की..।।
आज कहो तुम अपने मन की
आज कहूँ मैं अपने मन की
दिल से दिल की बातें होंगी
चाहत हो फिर अपनेपन की..।।
चाहत हो फिर अपनेपन की..।।
*विजय कनौजिया,काही भीटी ,अम्बेडकर नगर, मो-9818884701
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
0 टिप्पणियाँ