*विजय कनौजिया*
मुझे अकेला छोड़ चले तुम
सारे रिश्ते तोड़ चले तुम
मन की सब आशाएं टूटीं
सारे नाते तोड़ चले तुम..।।
जिन आँखों ने सपने देखे
तेरी आँखों के संग मिलकर
आज उन्हीं आँखों में फिर क्यूं
आँसू देकर चले गए तुम..।।
रिश्ते में हो भाव समर्पण
अपनों को हो सब कुछ अर्पण
ऐसा बतलाया था तुमने
फिर क्यूं इतने बदल गए तुम..।।
नहीं भूलना है जीवन भर
मिलकर साथ निभाना है
रिश्तों की है यही धरोहर
फिर क्यूं मुझको भूल गए तुम..।।
छोटी सी अनबन रिश्ते में
विरह वेदना दे जाती है
देते थे मुस्कान हमेशा
न जाने क्यूं रूठ गए तुम..।।
न जाने क्यूं रूठ गए तुम..।।
*विजय कनौजिया,काही,जनपद-अम्बेडकर नगर (उ0 प्र0),मो0-9818884701
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
0 टिप्पणियाँ