*श्रीमती सुशीला शर्मा*
दर्पण क्यों देखूँ मैं तुमको
कुछ भी तो ना बदला है
वही है सूरत वही है सीरत
वही सोच वही फेरा है ।
दर्पण तुमको कैसे देखूँ
सच्चाई बतलाते हो
जो कुछ भी करती हूँ मैं
तुम चेहरे पर दिखलाते हो।
दर्पण तुमको कब देखूँ मैं
समय नहीं मिल पाता है
दुनियादारी के चक्कर में
कुछ भी रास न आता है ।
दर्पण तुमको कहाँ मैं देखूँ
तुम कमरे में रहते हो
मैं रहती हूँ व्यस्त सदा
इसलिए नहीं तुम दिखते हो।
दर्पण तू ही भेद बताता
समझ नहीं मैं पाती हूँ
भाव छुपे हैं जो भी मन में
चेहरे पर झलकाती हूँ।
दर्पण झूठ नहीं कहते तुम
सच्चे भेद बताते हो
बड़े बड़े सब राज खोलकर
सच्ची राह दिखाते हो।
*श्रीमती सुशीला शर्मा,64 - 65 विवेक विहार,न्यू सांगानेर रोड, सोडाला,जयपुर - 302019,फोन - 9214056681
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
0 टिप्पणियाँ