*मीनाक्षी सुकुमारन*
बड़ी ही कठिन
है राह
भैया आभासी दुनिया की
जिसका न कोई आर न कोई छोर
बस है एक भंवर जाल
जिसमें डूबे तो बस
न मिले मँझदार भी ।।
कोई रिझाये
कोई बहलाये
बन अपना
कोई मीठा
कोई तीखा
बस है ये फेर ऐसा
कब कोई
अपना बन हो जाये पराया
कोई कोई
पराया बनना चाहे अपना
बड़ी है विचित्र
है ये आभासी दुनिया
बस एक भंवर गहरा
जिसमें न मिले मझधार भी
किसी से न बोलो
तो आप नकचढ़े
किसी से बोलो
तो स्वभाव बन जाये सवाल
है बड़े ही अजीब
तेवर, रंग ढ़ंग
भैया इस आभासी दुनिया के
समझ से परे
दिल और दिमाग दोनों के
बस फिर भी है
मोहपाश इसका ऐसा
लाखों खामियों
परेशानियों, खट्टे मीठे अनुभव
होने पर हर कोई जुड़ा है
बँधन में इसके
न जाने कैसा है चुम्बकीय
आकर्षण इसका
की खुद ही है ये भंवर
तो खुद ही पतवार भी
खुद ही है मझधार
तो खुद ही खेवैया भी
विश्वास और अविश्वास
की इस आभासी दुनिया में।।
*मीनाक्षी सुकुमारन,नोएडा
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