*मीनू मांणक*
क्यूं कतराते हो बेटी से ।
जो जीवन का कतरा-कतरा तुम्हें समर्पित करती रही ।।
सुने आँगन को किलकारीयों से भरा ।
भाई की सुनी कलाई खुशियों से भरती रही ।।
आज झूली जिन बाहों में ।
कल उन्हीं बाबूल का सहार बनती रही।।
बिठा कर डोली में जब कर दिया पराया ।
भिगी पलकें लिए , मान तुम्हारा बड़ा कर जाती रही ।।
भेजा जिस अगंना में , वहाँ भी प्यार के फूल खिलाती रही ।
नहीं किया सवाल कभी , लाज दोनों कुल की निभाती रही ।।
हुई जब गर्भवती , स्पर्श कर अपनी कोख को ।
मन की आँखों से छवि संतान की संजोती रही ।।
कभी दर्द से करहाती ,
तो कभी ख़ुशी से पलकों को भिगोती रही ।।
कभी बेचैन यहाँ-वहाँ डोलती ।
तो कभी गर्भ की धड़कनों को महसूस करती रही ।।
कभी एकांत में वादा ये करती ---
ख़ुशियों से भर दूंगीं जीवन तेरा ।
पलकों से अपनी चुन लूगीं कांटे आये ग़र राहों में बेटा ।।
नहीं खोया तब भी आत्मविश्वास , प्रसव पिड़ा सहती रही ।
दे कर जन्म संतान को , खुद को सोभाग्यशाली मानती रही ।।
लगा कर सीने से संतान को , फर्ज अपना निभाती रही ।
एक बेटी , माँ बन कर कतरा-कतरा समर्पित होती रही ।।
क्यूं कतराते हो उस बेटी से .....
जो जीवन का कतरा-कतरा तुम्हें समर्पित करती रही...
*मीनू मांणक ,2142--D , सुदामा नगर , रींग रोड़ , जारोलिया मार्केट इन्दौर (म प्र) मो. 9424588824
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