*अजय कुमार द्विवेदी*
लिखना पढ़ना मै क्या जानूँ बस मन के भाव लिख देता हूँ।
जो हृदय में चलता है मेरे सब कागज से कह देता हूँ।
कुप्रथा समाज की देख सदा नैनों से जल बह जाता है।
चल गई अजब है रीति यहां अब जीव जीव को खाता है।
कहीं पे बच्चे भूखे सोते कहीं पे भोजन फिकता है।
कहीं जवानी नाचे कूदे कहीं पे बचपन रोता है।
मेहनतकश इंसान यहां जीवन भर ठोकर खाता है।
भ्रष्टाचार मे लिप्त जो मानव पैसा खूब कमाता है।
दरबारों की शोभा बढ़ती दौलतमंद अमीरों से।
दूरी बना कर रखता राजा भूखे और गरीबों से।
मद के नशे में चूर हो मानव मानव से ही जलता है।
कौन मित्र है कौन है दुश्मन पता नहीं कुछ चलता है।
फिर भी मन है मूरख इतना जाने क्यूँ इतराता है।
सबको ही अपना कह देता जिनसे भी हाथ मिलाता है।
*अजय कुमार द्विवेदी,E-4/347, Gali No-8, 4th Pusta, Soniya Vihar Delhi, Mo.8800677255
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
यह भी पढ़े-
विकास के कुछ आयाम जो कितने हानिकारक हैं
आधुनिक जीवनशैली मे तेजी से बिगडता जा रहा मानसिक स्वास्थ
महाराजा अग्रसेन का उपकारहीन उपक्रम: एक निष्क और एक ईंट
0 टिप्पणियाँ