*कमलेश व्यास 'कमल'*
है भरा कल एक सीकर हो न हो
ये समां फिर ज़िन्दगी भर हो न हो।
तन किराए का महज कमरा समझ
इस जनम में घर मयस्सर हो न हो।
ज़िन्दगी भर आपको अपना लगे
क्या पता वो आपका घर हो न हो
हो कटीला पर धरातल ही सही
भावना का पार सागर हो न हो।
बाअदब रहना हमेशा वक़्त से
वक़्त के हाथों में पत्थर हो न हो।
खूब उड़ता है जरा सी देर में
मन के पंछी को लगे पर हो न हो।
रूह की बातें करेंगे रूह से
बोलने को ढाई आखर हो न हो।
है मुनासिब आज का सोचें 'कमल'
आज हैं हम कल यहाँ पर हो न हो।
*कमलेश व्यास 'कमल' उज्जैन
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
0 टिप्पणियाँ