*सोनिया सराफ*
तुम कहते हो
लिखती ही तो हो
मैने कहा हाँ
शब्दो के सागर में
गोते लगाकर
अंतरंग मे हिलोरो
सा रोमांच ही तो है बस
मनोस्थिति को बतियाती हुई
सुरमई सांझ मे आंगन में बैठी
सखी के संग गुफ्तगू ही तो है बस
आखर की गागर से
छलकते, बूंदों से
निकलती सौंधी -सौंधी महक ही है बस
मधुर अहसास को समेटे हुए
मौन रहकर भी
बहुत कुछ कहने की कला ही तो है बस
और तुम कहते हो लिखती ही तो हो बस..........
*सोनिया सराफ अलिराजपुर
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