रहने दो एक शायद
अपने शब्द कोश में
रख लो इसे सहेज कर
किसी कोहिनूर की भाँति
कि शायद, केवल एक शब्द भर नहीं है
इस शायद में छुपी होती है एक
सकारात्मक ध्वनि
कान लगा कर सुनों
अगर सुन सकते हो तो कि
जब किसी गहन निराशा में
घने अंधकार में, कड़वी सच्चाई में
डुबोती नकारात्मकता में ,
आहत करते व्यवहार में
यह शायद ही है वह उम्मीद
जो बचा लेता है संबंधों को,
बचा लेता है भरोसा,
बचा लेता है खुद के भीतर की अच्छाई
दे देता है खुद को दिलासा,
कभी कभी झूठा ही सहीं
सोचो न जब तुम लगा देते हो
किसी के साथ शायद तो ,
कि शायद उसका मतलब यह नहीं था
कि शायद ऐसा न हुआ हो
कि शायद मैंने गलत समझा
कि शायद उसकी कोई मजबूरी रही हो
कि शायद अब सब ठीक होगा
कि शायद और फिर शायद
कितना सुकून मिलता है
ना इस शायद से
यह तैयार कर देता है एक
ज़मीन दूसरे को एक बार और
मौका देने की,
उसे और समझने की
और खुद को और गहरा
करने का साधन है शायद
वो भी क्या कम बड़ी बात है
इसलिए ज़िंदा रखो एक शायद
अपने भीतर हमेशा।
*डॉ गरिमा संजय दुबे इंदौर
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