*माया मालवेन्द्र बदेका*
इठलाती धरा हरियाली धरा, बोल झूम कर कहां चली।
नभ बरसेगा,मन हरषेगा,मिलन होगा अंबर की तली।
घुमड़ घुमड़ कर छाई है घटा।
गगन गरजकर कैसे फटा।
मत रोको मुझको जाने दो।
धरणी की प्यास बुझाने दो
देखो वसुधा मुझे पुकारती।
झूमकर नजर मेरी उतारती।
बाट जोहती अधीर धरा लली।
मुस्काती धरा तू कहां चली।
इठलाती धरा हरियाली धरा, बोल झूम कर कहां चली।
नभ बरसेगा,मन हरषेगा,मिलन होगा अंबर की तली।
आंचल फैलाये वसुंधरा।
धरती का अंगना हरा हरा।
बादल को आज बरसने दो।
मेघों को नीचे उतरने दो।
बाहों में उनको भर लूंगी।
अतृप्त प्यास बुझा लूंगी।
अम्बर मिलन की आस फली।
मेरी खिल जाये,कली कली।
इठलाती धरा हरियाली धरा, बोल झूम कर कहां चली।
नभ बरसेगा,मन हरषेगा,मिलन होगा अंबर की तली।
*माया मालवेन्द्र बदेका,७४ अलखधाम नगर,उज्जैन (मध्यप्रदेश)
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