*सोनल पंजवानी*
नीड़ का पंछी जब नीड़ छोड़
उड़ने को तत्पर हुआ
मानस पटल पर कितनी यादें खिल उठीं
उसके आने की,चहचहाने की,
गीत गाने की, उड़ान भरने की,
सब कुछ सजीव हो चला।
समय जड़वत हो कर
उस पटल को देखता रहा कुछ क्षण
फिर ठिठक कर कूच करने को
तत्पर हुआ
उसे याद आया वह रुकना नहीं जानता
उसे तो चलते जाना है।
और बढ़ चला वह महाप्रयाण की ओर।
*सोनल पंजवानी,इंदौर
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2 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंअन्तिम निष्कर्ष तो वही है। सुन्दर पंक्तियाँ।
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