*राजबाला 'राज'*
इस दर्जा आज उनकी इनायात हो गयी
मारे ख़ुशी के अश्क की बरसात हो गयी
कितनी अजीब देखिये यह बात हो गयी
लिख तो रही ग़ज़ल थी मुनाजात हो गयी
मेरी ख़ुशी का दोस्तो आलम न पूछिये
मुद्दत के बाद उनसे मुलाकात हो गयी
चंदा ने बादलों की हटाईं क्या चादरें
कितनी हसीन देखिये यह रात हो गयी
ग़ज़लों में मेरी रंग छलकते हैं दर्द के
समझूँगी यह ही इश्क की सौगात हो गयी
तकरार उनसे होने लगी रात दिन ही अब
पैदा अजीब उनमें शिकायात हो गयी
ऐ राज आये कैसे मिरी शायरी में रंग
हर मोड़ पर ही ज़िंदगी में मात हो गयी
*राजबाला "राज" हिसार
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