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किनारा (कविता)




*विजय सिंह चौहान*

आखिर मुंह 

मोड़ लिया, तुमने 

खुद से,

 

दफन, कर दी 

जमीं, यादों की

आसमां, अरमानों का 

 

समेट लिया 

समंदर, अपनी 

भावनाओं का 

 

बंद कर ली 

कजरारी आंखें 

सुनहरी यादें 

कुछ अपने,

कुछ सपने 

 

अब कर लेना 

जी भर के 

श्रृंगार 

 

मेहंदी, चूड़ी 

बिंदी, पायल 

सब पूछेंगे 

सबब

खामोशी का 

 

फिर, 

फेर लेना मुँह

दर्पण से 

और ओढ़ लेना 

आँचल

झूठ का.......

 

*विजय सिंह चौहान,30 अधिवक्ता चेंबर ,मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय परिसर ,इंदौर,मो. 9691555365



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