*माया मालवेन्द्र बदेका*
मन अटकाय रही मन भरमाय रही, गौरी तेरी पलकें।
सावन की घटा सा शोर मचाय रही, गौरी तेरी अलके।
छनक छनक पायल की रूनझुन ,जिया धडके मोरा।
भीनी हवा का झोंका दे गया, लहराता आंचल तोरा।
मोहिनी सा लागे मुखड़ा,निखरा निखरा रुप सलोना।
दमदम खिले रुप तेरा गौरी , गाल गुलाबी मलके।
मन अटकाय रही मन भरमाय रही, गौरी तेरी पलकें।
सावन की घटा सा शोर मचाय रही, गौरी तेरी अलके।
फिरू बावरा तेरी लगन में, तुझे ढूंढ रहा वन उपवन।
चैन न पाये एक पल मनवा,लागी कैसी प्रेम लगन।
तड़प रहे है निशदिन हम तो बरस रहे हैं अश्रु नैना।
प्रेम गगरियां भरी हुई है , विरह वियोग में छलके ।
मन अटकाय रही मन भरमाय रही, गौरी तेरी पलकें।
सावन की घटा सा शोर मचाय रही, गौरी तेरी अलके।
*माया मालवेन्द्र बदेका,उज्जैन (मध्यप्रदेश)
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