-संजय वर्मा 'दृष्टि '
कानों को भाती
ध्वनियाँ
मंदिर की घंटी
कोयल की कूंक हो या
सुबह उठने के लिए
माँ की मीठी पुकार
कानों के लिए
वाणी की मिठासता बना जाती
मोहपाश सा बंधन
या उसी तरह भी लगती है
जैसे प्रेमी -युगल की मीठी बातों से
भरा हो प्यार का सम्मोहन
कानों को न भाती
तेज कर्कस कोलाहल भरी
आवाजें
ला देती कानों में बहरापन
तभी तो उनके कानों तक
समस्याओं के बोल पहुँच नहीं पाते
या फिर हो सकता है
दिए जाने वाले कोरे आश्वासन
हमारे कान सुन नहीं पाते हो
तब ऐसा लगता है
मानों विकास के पथ पर
लगा हो जंग
या प्रदूषण से कानों में
जमा हो गया हो मैल
*संजय वर्मा "दृष्टि ",125 ,शहीद भगत सिंग मार्ग ,मनावर जिला धार (म प्र )
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