*दीपशिखा सागर*
इससे पहले कि इश्क़ छल जाए,
हुस्न ख़ुद रास्ता बदल जाए।
जिसमें शामिल न उनकी यादें हों,
दिन वो गुज़रे न कोई पल जाए।
मैंने इतने फ़रेब खाये हैं,
गिनने बैठूं तो उम्र ढल जाए।
उसकी मर्ज़ी है गर वो चाहे तो,
आँधियों में चराग़ जल जाए।
है यही आरजू लहद में भी,
साथ मेरे मेरी ग़ज़ल जाए।
देख फ़न पर गुरूर ठीक नहीं,
मशवरा है कि तू सँभल जाए।
शमएदाने ग़ज़ल से निकली हुई,
रोशनी ज़िन्दगी में ढल जाए।
क्या कली है यहाँ कोई ऐसी,
पत्थरों का जो दिल मसल जाए।
जान जाना तो सच है पर देखें,
आज जाए 'शिखा' कि कल जाए।
*दीपशिखा सागर,छिन्दवाडा
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